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आ भार॑ती॒ भार॑तीभिः स॒जोषा॒ इळा॑ दे॒वैर्म॑नु॒ष्ये॑भिर॒ग्निः। सर॑स्वती सारस्व॒तेभि॑र॒र्वाक् ति॒स्रो दे॒वीर्ब॒र्हिरेदं स॑दन्तु॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā bhāratī bhāratībhiḥ sajoṣā iḻā devair manuṣyebhir agniḥ | sarasvatī sārasvatebhir arvāk tisro devīr barhir edaṁ sadantu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। भार॑ती। भार॑तीभिः। स॒ऽजोषाः॑। इळाः॑। दे॒वैः। म॒नु॒ष्ये॑भिः। अ॒ग्निः। सर॑स्वती। सा॒र॒स्व॒तेभिः॑। अ॒र्वाक्। ति॒स्रः। दे॒वीः। ब॒र्हिः। आ। इ॒दम्। स॒द॒न्तु॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:4» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (भारतीभिः) सुन्दर शिक्षित वाणियों के साथ (सजोषाः) एकसी सेवा और प्रीतिवाली (भारती) विद्या और शिक्षा से धारण किई हुई वाणी वा (देवैः) दिव्यगुण और (मनुष्येभिः) विचारशील पुरुषों के साथ समान सेवा और प्रीतिवाली (इळा) पृथिवी और (अग्निः) प्रकाशमान अग्नि वा (सारस्वतेभिः) वाणी में उत्पन्न हुए भावों के साथ (सरस्वती) प्रशंसित विज्ञानयुक्त वाणी (तिस्रः) उक्त तीनों (देवीः) देदीप्यमान (अर्वाक्) नीचे से (इदम्) इस (बर्हिः) अन्तरिक्ष को (आ) अच्छे प्रकार स्थिर होती हैं, उनको सब मनुष्य (आ, सदन्तु) आसादन) करें, उनका आश्रय लें अर्थात् उनमें अच्छे प्रकार स्थित हों ॥८॥
भावार्थभाषाः - जिन मनुष्यों की विद्वानों की धारणा के अनुकूल धारणा, प्रशंसा के अनुकूल स्तुति, वाणी के अनुकूल वर्त्ताववाली वाणी वर्त्तमान है, वे अन्तरिक्षस्थ शुभ वाणी को प्राप्त होकर आनन्द को प्राप्त होते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

या भारतीभिः सह सजोषा भारती देवैर्मनुष्येभिश्च सह सजोषा इळा अग्निश्च सारस्वतेभिस्सह सरस्वती तिस्रो देवीरर्वागिदं बर्हिरासीदन्ति ताः सर्वे मनुष्या आसदन्तु ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (भारती) विद्याशिक्षाधृतावाक् (भारतीभिः) सुशिक्षिताभिर्वाणीभिः (सजोषाः) समानसेवनप्रीतिः (इळा) पृथिवी (देवैः) दिव्यैर्गुणैः (मनुष्येभिः) मननशीलैः (अग्निः) भास्वरः (सरस्वती) प्रशस्तज्ञानयुक्ता (सारस्वतेभिः) सरस्वत्यां भवैः (अर्वाक्) अधस्तात् (तिस्रः) त्रित्वसंख्याकाः (देवीः) देव्यो देदीप्यमानाः (बर्हिः) अन्तरिक्षम् (आ) (इदम्) प्रत्यक्षे वर्त्तमानम् (सदन्तु) तिष्ठन्तु ॥८॥
भावार्थभाषाः - येषां मनुष्याणां विद्वद्धारणानुकूला धारणा प्रशंसानुकूला स्तुतिर्वागनुवृता वाग्वर्त्तते तेऽन्तरिक्षस्थां शुभां वाणीं प्राप्यानन्दन्ति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या माणसांची विद्वानांच्या धारणेनुसार धारणा, प्रशंसेच्या अनुकूल स्तुती, वाणीच्या अनुकूल आचरण करणारी वाणी आहे, त्यांना अंतरिक्षातील शुभ वाणी प्राप्त होऊन आनंद मिळतो. ॥ ८ ॥